तालीम से काटो अंधेरा

बालिका-महिला शिक्षा के लिए प्रेरणा पुंज है शगुफ्ता
राजस्थान में ख्वाजा की नगरी अजमेर में अरावली पहाड़ी की तलहटी में बसी मुस्लिम बस्ती में अरसे से अशिक्षा का अंधेरा था। जहां महिलाओं का काम था घर और बच्चे संभालना। बालिकाओं को स्कूल भेजने की जरूरत ही नहीं समझी जाती थी। शोषण, घरेलू हिंसा की जड़ें उस अंधेरे में कहां तक पहुंच गई…किसी ने सोचा भी नहीं। करीब तीस साल पहले उस अंधेरे के बीच एक किरण फूटी, जो आज घनी आबादी में तालीम की रोशनी बांट रही है। उसका मानना है ‘तालीम ही वह शमशीर है जो जिंदगी की हर मुसीबत को काट सकती है।

हजारों लोगों की इस बस्ती में करीब-करीब हर महिला-बालिका उस किरण को शगुफ्ता मैडम के नाम से जानती हैं। शगुफ्ता खान, जिसका ख्वाब है, ‘हर बालिका पढ़े, हर महिला पढ़ी-लिखी आत्मनिर्भर हो। उनकी सेहत ठीक और भविष्य उज्ज्वल हो। वह मानती हैं, पवित्र कुरान हो या भारतीय संविधान दोनों में महिलाओ को बराबर के अधिकार मिले हुए हैं। जरूरत समझने की है। वह घर-घर जाकर महिलाओं को बताती हैं, ‘महिलाएं कुरान का अनुवाद पढें़, उन्हें खुद अहसास होगा कि वे मर्द से कमतर नहीं हैं।Ó

जाने कितनी फरीदा-सलमा…
नौ साल पहले दक्षिण भारतीय फरीदा की अजमेर में शादी हुई। उसकी माली हालत खराब थी। शगुफ्ता के संपर्क में आकर उसने आठवीं और फिर दसवीं कक्षा पास की। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, आशा सहयोगिनी से लेकर आशा तक का सफर तय किया। आज अपनी जैसी अन्य महिलाओं के लिए आशा का ही काम कर रही है। यही कहानी सलमा की भी है। शगुफ्ता से पे्ररित होकर उसने ओपन स्कूल से दसवीं पास की। आज वह अनुदेशिका के तौर पर काम कर रही है। ऐसी ही जाने कितनी फरीदा और सलमा की जिंदगी में तालीम के सहारे शगुफ्ता ने उजाला किया है। शगुफ्ता खान ने बताया, ‘बचपन खादिम मोहल्ले में बीता। तब मुस्लिम महिलाओं का घर से बाहर निकलना अच्छा नहीं माना जाता था। जब मैं बहनों के साथ स्कूल जाती तो लोग बातें बनाते। कहते बच्चियों को पढ़ाने से क्या होगा? मां ने लोगों की नहीं अपने दिल की सुनी और हमें अच्छी तालीम दिलवाई।

दिन-ब-दिन फैला उजाला
गरीब नवाज महिला एवं बाल कल्याण समिति की सचिव शगुफ्ता खान ने अंदरकोट स्थित अपने घर के ऊपरी कमरे में दफ्तर बनाया। बस्ती से शुरू हुआ उनका सफर जयपुर, जोधपुर, भीलवाड़ा, टोंक तक पहुंच गया। नजदीकी गांव सोमलपुर को इस संस्था ने गोद ले रखा है। अब तक करीब डेढ़ हजार मुस्लिम महिला-बालिकाओं को पढ़ा-लिखाकर अपने पैरों पर खड़ा करना इस संस्था की उपलब्धि है। भजनगंज, बिहारी गंज में बीड़ी मजदूर महिलाओं के उत्थान के लिए भी संस्था सक्रिय है। महिला स्वयं सहायता समूह बनवाकर महिलाओं को पैरों पर खड़ा करना, सरकारी योजनाओं से महिलाओं को लाभान्वित कराना, पल्स पोलियो अभियान से लेकर डॉट्स तक के कार्य में भागीदारी निभाना इस संस्था का कार्य है। शगुफ्ता का संदेश है, हर औरत में रजिया सुल्तान, रानी लक्ष्मी बाई व इंदिरा गांधी जैसी कुव्वत है। बस मुस्लिम महिलाएं अंधेरे से निकलकर उजाले को पहचानें।

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